नई दिल्ली: चीन लगातार NSG में भारत के प्रवेश को लेकर विरोध करता आ रहा है अभी हाल ही में चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने संवाददाताओं से कहा, 'एनएसजी के मुद्दे पर मैं आपको बता सकता हूं कि एनएसजी में नये सदस्यों के प्रवेश पर चीन के रुख में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।' लू की यह टिप्पणी एससीओ समिति की बैठक में एनएसजी में भारत के प्रवेश का मुद्दा उठाये जाने पर था।
भारत के लिए NSG की राह है मुश्किल
-एनएसजी की पूर्ण बैठक अगले सप्ताह स्विट्जरलैंड की राजधानी बर्न में होनी है।
-यह मुद्दा भारत और चीन के साथ द्विपक्षीय बैठक में एक प्रमुख बाधा बन गया है।
-भारत को अमेरिका और कई पश्चिमी देशों का समर्थन हासिल है।
-भारत ने समूह के अधिकतर सदस्यों का समर्थन हासिल कर लिया है।
-चीन अपने इस रुख पर अड़ा हुआ है कि समूह के नये सदस्यों का एनपीटी पर हस्ताक्षर होना चाहिए।
-चीन ने ऐसा करके समूह में भारत का प्रवेश मुश्किल कर दिया है ।
-चीन 48 देशों वाले इस समूह में भारत की सदस्यता को रोकता रहा है।
-यह समूह परमाणु वाणिज्य का नियंत्रक समूह है।
-चीन का कहना 'एनपीटी पर हस्ताक्षर न करने वाले सभी देशों के लिए एक समान नियम'
चीन क्यो नही चाहता NSG में भारत का प्रवेश
-परमाणु क्षमता वाला एकमात्र एशियाई देश होने का रुतबा चीन ने वर्ष 1998 में खो दिया, जब भारत ने सिलसिलेवार परमाणु परीक्षण कर खुद को परमाणु हथियार संपन्न देश घोषित किया।
-तीस वर्षों से ज्यादा समय तक चीन यह रुतबा हासिल किए हुए था।
-पहले भारत, और बाद में पाकिस्तान ने परमाणु क्षमता हासिल कर तस्वीर बदल दी।
-चीन इस तथ्य को पचा नहीं पा रहा कि भारत एक वैश्विक खिलाड़ी के रूप में उभर चुका है, जबकि उसका सहयोगी पाकिस्तान पिछलग्गू बनकर ही रह गया।
-चीन की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है, जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे तेज गति से आगे बढ़ रही है।
-चीन वैश्विक मामलों में अधिक प्रभुत्व हासिल करने के भारत के अभियान को रोकने की कोशिश करना चाहता है।
-भारत और अमेरिका के बीच बेहतर संबंधों से भी चीन का संकट बढ़ गया।
-चीन का मानना है कि एशियाई मंच पर उसके प्रभुत्व को चुनौती देने वाला भारत ही है।